सर्व मङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
Transliteration:
sarva maṅgala māṅgalye śive sarvārthasādhike।
śaraṇye tryambake gauri nārāyaṇi namo’stu te॥
सभी मंगलो में मङ्गलमयी, कल्याणकारी, सभी मनोरथो को पूर्ण करने वाली,
शरणागत वत्सला, तीन नेत्रो वाली शिव की पत्नी आपको नमस्कार है।
Sanskrit translation:
Auspiciousness of all things auspicious! O consort of Shiva, fulfiller of all our goals!
Our only refuge! O three-eyed Gauri! O Narayani! Our salutations to you.
हमारी चेतना के अंदर सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण- तीनों प्रकार के गुण व्याप्त हैं। प्रकृति के साथ इसी चेतना के उत्सव को नवरात्रि कहते है। इन 9 दिनों में पहले तीन दिन तमोगुणी प्रकृति की आराधना करते हैं, दूसरे तीन दिन रजोगुणी और आखरी तीन दिन सतोगुणी प्रकृति की आराधना का महत्व है । महाकाली, महालक्ष्मी और महा सरस्वती ये तीन रूप में माँ की आराधना करते है| माँ सिर्फ आसमान में कहीं स्थित नही हैं, उनके लिये ऐसा कहा जाता है कि
"या देवी सर्वभुतेषु चेतनेत्यभिधीयते" - "सभी जीव जंतुओं में चेतना के रूप में ही माँ / देवी तुम स्थित हो"
नवरात्रि माँ के अलग अलग रूपों को निहारने और उत्सव मानाने का त्यौहार है। जैसे कोई शिशु अपनी माँ के गर्भ में 9 महीने रहता हे, वैसे ही हम अपने आप में परा प्रकृति में रहकर - ध्यान में मग्न होने का इन 9 दिन का महत्व है। वहाँ से फिर बाहर निकलते है तो सृजनात्मकता का प्रस्सपुरण जीवन में आने लगता है।
नवरात्रि के अंतिम दिन विजयोत्सव मनाते हैं क्योंकि हम तीनो गुणों के परे त्रिगुणातीत अवस्था में आ जाते हैं। काम, क्रोध, मद, मत्सर, लोभ आदि जितने भी राक्षशी प्रवृति हैं उसका हनन करके विजय का उत्सव मनाते है। रोजमर्रा की जिंदगी में जो मन फँसा रहता हे उसमें से मन को हटा करके जीवन के जो उद्देश्य व आदर्श हैं उसको निखार ने के लिए यह उत्सव मनाया जाता है। एक तरह से समझ लीजिये की हम अपनी बैटरी को रिचार्ज कर लेते है। हर एक व्यक्ति जीवनभर या साल भर में जो भी काम करते-करते थक जाते हे तो इससे मुक्त होने के लिए इन 9 दिनों में शरीर की शुद्धि, मन की शुद्धि और बुद्धि में शुद्धि आ जाए, सत्व शुद्धि हो जाए।
देवी की पूजा क्यों करनी चाहिए ?
इसके लिए साफ़ और कम शब्दों में कहें तो जब देवताओं पर भी कभी संकट आया तो उन्होंने ने भी भगवती का आवाहन किया था जैसे की चण्ड-मुण्ड, शुम्भ-निशुम्भ दानवो का संघार करना और देवताओं को उनसे मुक्त किया था। प्रकृति में जो भी है वो सब भागवती का ही स्वरुप है हमारे जीवन के जो भी असाध्य कार्य है वो सभी देवी भगवती की आराधना से संभव हो जाते है और जो भी जीवन में बाधाएं होती है कार्यक्षेत्र या शारीरिक मानसिक किसी भी प्रकार की बाधा के लिए मार्कंडेय पुराण में कहा गया है की
"सर्वा बाधा विनिर्मुक्तो धन-धान्य सुतान्वितः। मनुष्यो मत्प्रसादेन, भविष्यति न शंसयः॥"
इसलिए भगवती की आराधना से ही हर प्रकार की बाधा को नष्ट किया जा सकता है वो माँ स्वरूप है और संसार के समस्त प्राणियों को वो पुत्रवत स्नेह करती है। इसलिए हमें उनकी आराधना करनी चाहिए ।
संकल्पम (वैदिक विधान की गवाही) संकल्प शब्द पंचांग, स्थान, समय, दिन, तीथि, नक्षत्र, योग और करण के वैदिक ज्योतिष को इंगित करता है। इन्हें भ्राम, विष्णु और शिव की तीन त्रिमूर्ति का पाठ किया जाता है। वैदिक विधान वर्तमान वैदिक वर्ष और उपमहाद्वीप और अन्य महत्वपूर्ण तत्वों के वैदिक नाम के लिए पाठ करता है। संकल्प के अंत में परिवार के सदस्यों के नाम, गोत्र, राशि, पूजा के भाग के रूप में जन्म लेने और भगवान गणपति, नवग्रह परिवार देवता (कुला देवता), ग्राम देवता और ईशता से आशीर्वाद प्राप्त करने की आवश्यकता होती है। तदोपरांत फिर जो हम पूजा करने वाले है उसकी निर्विघ्नता पूर्ण संम्पन्नता एवं अपने त्रिविध तापों को नष्ट करने की लिए किये जाने वाले सम्पूर्ण पूजा का क्रम बोलते है उसके उपरांत संकल्प को पूरा करते है और गणेश जी को समर्पित करते है और आशीर्वाद की कामना करते है ।
संकल्प के बाद गणेश और गौरी जी का आह्वान, पूजन अभिषेक उसके उपरांत कलश स्थापना, पुण्याहवाचन फिर देवी देवताओं का अहवाह्न और उनकी षोडशोपचार से पूजा
( षोडशोपचार पूजा क्रम :
उसके उपरांत दुर्गा सप्तशती का पाठ या जप, पाठ या जप संम्पन्न होने के बाद आरती, पुष्पांजलि, और क्षमाप्रार्थना.
यही क्रम नवरात्रि के नौ दिनों तक चलता है और अष्टमी को रात्रि में भगवती का विशेष हवन और नवमी तिथि को पूर्णाहुति तदुपरांत विसर्जन।
Duration: One Day
Acharya: One Acharya
Dakshina: 5100/-
Procedure:
Duration: Nine Days
Acharya: One Acharya
Dakshina: 21000/-
Procedure:
Duration: Nine Days
Acharya: Three Acharya
Dakshina: 51000/-
Procedure: